October 11, 2025 | by support@rabgcontent.com

सोने की कीमत में आई तेजी ने पूरे देश में हलचल मचा दी है। आज सोने का भाव एक लाख के पार पहुंच गया है, जबकि कुछ साल पहले यह 50 हजार रुपए के आसपास था। यह बड़ा उछाल निवेशकों, आम खरीदारों और जूलरी बिजनेस से जुड़े लोगों के लिए चिंता का विषय बन गया है।
यह ब्लॉग किसके लिए है:
यह जानकारी उन सभी के लिए है जो सोने की बढ़ती दरों को लेकर परेशान हैं – चाहे आप त्योहार के लिए गहने खरीदना चाहते हों, निवेश की सोच रहे हों, या बस समझना चाहते हों कि आखिर सोना महंगा क्यों हो रहा है।
इस ब्लॉग में हम जानेंगे:

वर्तमान समय में दुनियाभर में चल रहे सैन्य संघर्षों का सीधा प्रभाव सोने की कीमत पर पड़ रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध और इसराइल-हमास युद्ध जैसे भू-राजनीतिक तनाव के कारण निवेशकों में अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। इन परिस्थितियों में लोग सोना निवेश को एक सुरक्षित विकल्प मानते हैं।
ग्लोबल मार्केट में टैरिफ़ की अनिश्चितता और आर्थिक उथल-पुथल के बीच बाजार में अस्थिरता होने पर निवेशक आम तौर पर सोने में निवेश करना पसंद करते हैं। यह प्रवृत्ति राजनीतिक अस्थिरता या आर्थिक मंदी के दौरान और भी मजबूत हो जाती है, जिससे सोने की दरें भारत में प्रभावित होती हैं।
दुनियाभर के सेंट्रल बैंक बढ़-चढ़कर सोना महंगा होने के बावजूद भी सोने की खरीदारी कर रहे हैं। इकॉनमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, सोने की कीमत बढ़ने के कारण के बावजूद केंद्रीय बैंक सोने की खरीदारी जारी रखे हुए हैं ताकि अपने फॉरेन एक्सचेंज को डायवर्सिफाई कर सकें।
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के आंकड़ों के मुताबिक, बीते अगस्त महीने में दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों ने नेट 15 टन सोना अपने भंडार में जोड़ा है। यह आंकड़ा दिखाता है कि आज सोने का भाव बढ़ने में केंद्रीय बैंकों की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और अधिकांश देशों के केंद्रीय बैंक मुद्रा के साथ सोने के भंडार रखते हैं। जब आरबीआई बेचने से अधिक मात्रा में सोना खरीदना शुरू कर देता है, तो इसके परिणामस्वरूप सोने में तेजी आती है।
इकॉनमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर के केंद्रीय बैंक अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए सोने की खरीददारी कर रहे हैं। जब कोई देश डॉलर से दूर जाता है या दूरी बनाता है तो यह डी-डॉलराइजेशन कहलाता है।
हाल के वर्षों में अमेरिका की नीतियों से डॉलर को लेकर कई देशों में आशंका पैदा हुई है। साल 2015 और 2016 के बाद अमेरिका ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं, जिसके बाद से ही कुछ देश डॉलर को लेकर असहज रहे हैं।
डोनॉल्ड ट्रंप के कार्यकाल में टैरिफ़ को लेकर बढ़ती अनिश्चितता और ग्लोबल मार्केट में जारी उथल-पुथल को देखते हुए दुनियाभर के केंद्रीय बैंक अधिक से अधिक गोल्ड खरीद रहे हैं। यह प्रवृत्ति सोने की भविष्य कीमत को प्रभावित करने वाला महत्वपूर्ण कारक है।
गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट के मुताबिक अगर अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में कटौती करता है तो निवेशकों का रुख सोने की तरफ बढ़ता है और गोल्ड प्राइस टुडे भी बढ़ती है। यह एक महत्वपूर्ण आर्थिक कारक है जो सीधे तौर पर सोने की कीमतों को प्रभावित करता है।
फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति का प्रभाव न केवल अमेरिकी बाजार पर बल्कि वैश्विक स्तर पर सोने की कीमतों पर पड़ता है। जब ब्याज दरें कम होती हैं, तो सोना अन्य निवेश विकल्पों की तुलना में अधिक आकर्षक हो जाता है क्योंकि इसमें कोई ब्याज लागत नहीं होती।

महंगाई दर, या मुद्रास्फीति का सोने की कीमतों पर गहरा प्रभाव होता है। मुद्रास्फीति की दर आमतौर पर सोने की कीमत में बदलाव के सीधे आनुपातिक होती है। जब मुद्रास्फीति का उच्च स्तर होता है, तो इसका परिणाम आम तौर पर सोने की अधिक कीमतों का होता है।
यह घटना इसलिए होती है क्योंकि मुद्रास्फीति से मुद्रा का मूल्य गिरने लगता है। जब रुपए की क्रय शक्ति कम हो जाती है, तो निवेशक अपने धन की सुरक्षा के लिए सोने की तरफ रुख करते हैं। महंगाई के दौरान लोग आमतौर पर सोने के रूप में धन संचय करना पसंद करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि सोने की कीमत लंबे समय तक स्थिर रहती है।
ब्याज दरों और सोने की कीमतों में पारंपरिक रूप से और सामान्य परिस्थितियों में, विपरीत संबंध है। यह संबंध निवेशकों के व्यवहार पर आधारित है।
बढ़ती ब्याज दरों के साथ, लोग आमतौर पर उच्च लाभ कमाने के लिए सोने को बेचना पसंद करते हैं। जब बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों में अधिक रिटर्न मिलता है, तो निवेशक सोना बेचकर उन विकल्पों में निवेश करते हैं।
हालांकि, ब्याज दर में कमी के साथ, लोग अधिक सोना खरीदना पसंद करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप इसकी मांग में वृद्धि होती है, और इसकी कीमत बढ़ जाती है। कम ब्याज दरों का मतलब है कि अन्य निवेश विकल्प कम आकर्षक हो जाते हैं।
कई निवेशक मौजूदा माहौल में गोल्ड को हेजिंग रणनीति यानी जोखिम से बचाने की रणनीति के रूप में ले रहे हैं। हेजिंग का मतलब होता है अपने पोर्टफोलियो को संभावित नुकसान से बचाना।
इस प्रकार, सोना मुद्रास्फीति के खिलाफ हेजिंग उपकरण के रूप में भी कार्य करता है। जब अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता होती है या महंगाई बढ़ती है, तो सोना एक सुरक्षित आश्रय के रूप में काम करता है।
निवेशक सोने की दर में निवेश इसलिए करते हैं क्योंकि यह उनके धन की वास्तविक मूल्य को बनाए रखने में मदद करता है। सोने का मूल्य लंबी अवधि में स्थिर रहता है, जो इसे एक भरोसेमंद हेजिंग टूल बनाता है।
दुनियाभर के शेयर बाजारों में जब उठापटक का माहौल है, टैरिफ की अनिश्चितता चरम पर है तो गोल्ड में निवेश बढ़ना लाजिमी हो जाता है। यह स्थिति सोने को सुरक्षित निवेश का दर्जा दिलाती है।
सोने का मूल्य लंबी अवधि में स्थिर रहता है, और इसलिए इसे एक अनुकूल विकल्प के रूप में देखा जाता है जबकि अन्य संपत्ति समय के साथ अपना मूल्य खो देती है। जब शेयर बाजार में गिरावट होती है या आर्थिक अनिश्चितता बढ़ती है, तो निवेशक अपने पैसे को सुरक्षित रखने के लिए आज सोने का भाव देखकर खरीदारी करते हैं।
यही कारण है कि उन्हें आशंका है कि शेयर बाजार में नुकसान हो सकता है, इसलिए वे अपने पोर्टफोलियो को संतुलित रखने के लिए सोने में निवेश करते हैं। यह प्रवृत्ति सोने में तेजी का मुख्य कारण बनती है।

भारत में सोने की कीमत पर त्योहारी और शादी-विवाह सीजन का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है। त्योहारी सीजन में सोने की मांग में जो तूफानी तेजी आती है, उसके कारण आज सोने का भाव में उछाल देखा जाता है। दिवाली, नवरात्रि जैसे त्योहार हों या शादी-निकाह जैसे महत्वपूर्ण अवसर, भारतीयों के लिए सोना खरीदना अहम हो जाता है।
भारतीय परिवारों में शादी के बड़े समारोहों में या दीपावली जैसे महत्वपूर्ण त्योहारों पर आभूषणों से सुसज्जित होने का अपना महत्व है। इसलिए, शादी और त्योहार के दिनों में, उपभोक्ता मांग में वृद्धि के परिणामस्वरूप सोने की दर बढ़ जाती है। इस दौरान सोना निवेश की दृष्टि से भी लोग अधिक खरीदारी करते हैं।
भारत में सोने की दरें में ग्रामीण भारत का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है। रिपोर्ट्स के अनुसार, ग्रामीण भारत का भारत के कुल सोने की सालाना खपत 800-850 टन में 60 प्रतिशत का योगदान है। इसलिए देश में सोने की कीमत बढ़ने के कारण में ग्रामीण मांग का बहुत बड़ा प्रभाव है।
जहां दुनियाभर में अलग-अलग देशों के लोग औसतन अपनी कमाई का 2 से 3 फीसदी गोल्ड के रूप में रखते हैं, वहीं भारत में ये हिस्सेदारी 16 फीसदी तक है। चीन के बाद दुनिया में गोल्ड का सबसे बड़ा कंज्यूमर देश भारत ही है। अकेले भारत की सालाना मांग विश्व भर की सोने में तेजी की खपत के 25 प्रतिशत के बराबर है।
गोल्ड प्राइस टुडे पर मानसून और कृषि आय का प्रत्यक्ष प्रभाव दिखाई देता है। किसान अपनी कमाई के लिए अच्छी फसलों पर निर्भर करते हैं। किसानों का भी देश की सोने की खपत में लगभग एक तिहाई का योगदान होता है।
मानसून में अच्छी बारिश देश में सोना महंगा होने में योगदान देती है, क्योंकि किसान भी संपत्ति बनाने के लिए सोना खरीद सकते हैं। अच्छी फसल के कारण बढ़ी आय का एक हिस्सा सोने की खरीदारी में जाता है, जिससे सोने की भविष्य कीमत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
आजकल जूलरी एक्सचेंज का मार्केट काफी बढ़ा है। पुराने गहनों के बदले नए और ट्रेंडिंग गहने खरीदने का मार्केट अब तकरीबन 30 प्रतिशत का हो चुका है। ज्यादातर लोग अभी भी 22 कैरेट की ज्वेलरी ही खरीदना चाहते हैं, हालांकि 18 कैरेट, 20 कैरेट के सोने के गहने भी लोग खरीद रहे हैं।
यह एक्सचेंज सिस्टम न केवल पुराने गहनों को नए रूप में बदलने का अवसर देता है, बल्कि सोने की मांग को भी बनाए रखता है। इससे बाजार में निरंतर गतिशीलता बनी रहती है।

भारत में सोने की कीमत मुख्यतः अंतर्राष्ट्रीय बाजार और मुद्रा दरों से प्रभावित होती है। चूंकि अधिकांश सोना आयात किया जाता है, डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य कमजोर होने पर रुपए में सोने की दर बढ़ जाती है। यह प्रत्यक्ष संबंध भारतीय उपभोक्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है जो गोल्ड प्राइस टुडे को निर्धारित करता है।
जब डॉलर मजबूत होता है और रुपया कमजोर पड़ता है, तो आयातकों को अधिक रुपए देने पड़ते हैं, जिससे घरेलू बाजार में सोने का भाव बढ़ जाता है। यह एक स्वचालित प्रक्रिया है जो वैश्विक मुद्रा बाजार की गतिविधियों से सीधे जुड़ी होती है।
डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य कमजोर होने पर रुपए में सोने की कीमत बढ़ जाती है। यह एक द्विपक्षीय प्रभाव डालता है – एक ओर कीमतें बढ़ती हैं, वहीं दूसरी ओर रुपए की गिरती हुई कीमत के कारण सोने की मांग कम हो सकती है।
मुद्रा में अस्थिरता के कारण:
यह चक्रीय प्रक्रिया आज सोने का भाव को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में से एक है।
विश्व स्तर पर सोने की कीमत में कोई भी परिवर्तन भारत में इसकी कीमत को प्रभावित करता है। भारत सोने के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक होने के कारण, अंतर्राष्ट्रीय मूल्य में उतार-चढ़ाव का तुरंत प्रभाव देखने को मिलता है। सोने की दरें भारत में वैश्विक रुझानों को दर्शाती हैं और स्थानीय कारकों के साथ मिलकर अंतिम मूल्य निर्धारण करती हैं।
गोल्ड के रेट अलग-अलग देशों में अलग-अलग होते हैं और ये उस देश के सेंट्रल बैंक्स में कितना गोल्ड रिज़र्व है और वहां अमेरिकी डॉलर कितना मजबूत है, साथ ही गोल्ड की सप्लाई और डिमांड पर भी निर्भर करता है। यह सोने की भविष्य कीमत को प्रभावित करने वाला एक जटिल तंत्र है जो केंद्रीय बैंकों की नीतियों और राष्ट्रीय आर्थिक रणनीतियों से जुड़ा होता है।

भारत में व्यक्तिगत सोने की कीमत में वृद्धि के साथ-साथ, भंडारण नियमों को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है। भारतीय आयकर कानून के अनुसार, महिलाओं के लिए 500 ग्राम सोना, पुरुषों के लिए 250 ग्राम सोना और अविवाहित लड़कियों के लिए 250 ग्राम सोना निवेश की सीमा निर्धारित है। इन सीमाओं से अधिक सोना रखने पर उचित दस्तावेजी प्रमाण आवश्यक होता है।
सोने की दरें भारत में अंतर्राष्ट्रीय कीमतों से प्रभावित होती हैं, इसलिए विदेश से सोना लाने के नियम काफी कठोर हैं। व्यक्तिगत उपयोग के लिए महिलाएं 40 ग्राम तक और पुरुष 20 ग्राम तक सोना ला सकते हैं। इससे अधिक मात्रा पर भारी कस्टम ड्यूटी लगती है, जो वर्तमान में 15% तक हो सकती है।
आज सोने का भाव बढ़ने के कारण कर अधिकारी सोने की खरीदारी पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। हर सोने की खरीदारी का वैध रसीद और स्रोत प्रमाण रखना आवश्यक है। 2 लाख रुपये से अधिक की सोने की दर पर खरीदारी करने पर पैन कार्ड की आवश्यकता होती है। कैपिटल गेन टैक्स भी लागू होता है जब सोना 3 साल से पहले बेचा जाता है।
गोल्ड प्राइस टुडे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भिन्न-भिन्न है। दुबई में सोने की कीमत भारत से 8-10% कम होती है, जबकि अमेरिका और यूरोप में कीमतें अपेक्षाकृत स्थिर रहती हैं। सोने की भविष्य कीमत को देखते हुए, विभिन्न देशों में आयात नियम और कर संरचना की तुलना निवेशकों के लिए महत्वपूर्ण है।

सोने की भविष्य कीमत को लेकर वैश्विक निवेश बैंक गोल्डमैन सैक्स के विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में सोने की दरों में निरंतर वृद्धि देखने को मिल सकती है। वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों और भू-राजनैतिक तनाव को देखते हुए, सोना निवेश के लिए एक आकर्षक विकल्प बना रहेगा। मुद्रास्फीति की चुनौतियों और वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता के कारण निवेशकों का रुझान सुरक्षित संपत्तियों की ओर बढ़ता जा रहा है।
विश्व के प्रमुख केंद्रीय बैंकों द्वारा सोने की खरीदारी का चलन जारी रहने की प्रबल संभावना है। चीन, भारत और रूस जैसे देशों के केंद्रीय बैंक अपने विदेशी मुद्रा भंडार में विविधता लाने के लिए सोने की मात्रा बढ़ा रहे हैं। यह रणनीति डॉलर पर निर्भरता कम करने और आर्थिक सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से अपनाई जा रही है। केंद्रीय बैंकों की यह निरंतर मांग सोने की कीमत में स्थिरता और वृद्धि का मुख्य कारक बनी रहेगी।
भारत में आने वाले त्योहारी सीजन में सोने की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि की उम्मीद की जा रही है। दीवाली, धनतेरस और शादी-विवाह के मौसम में पारंपरिक रूप से सोने की खरीदारी में तेजी आती है। इस बार विशेष रूप से आज सोने का भाव बढ़ने के बावजूद भी उपभोक्ताओं की खरीदारी की प्रवृत्ति मजबूत बनी हुई है। ज्वेलरी की बढ़ती मांग और निवेश के उद्देश्य से की जाने वाली खरीदारी से सोने की दरें भारत में और भी मजबूती दिखा सकती हैं।
वर्तमान बाजार परिस्थितियों में सोना निवेश के रूप में अपनी विश्वसनीयता साबित कर रहा है। पिछले कुछ दशकों के आंकड़ों को देखें तो सोने ने मुद्रास्फीति के खिलाफ एक मजबूत बचाव का काम किया है। सोने की कीमत बढ़ने के कारण में वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता, युद्ध, और मुद्रा की घटती विश्वसनीयता शामिल है। निवेशकों के लिए सोना एक हेज के रूप में काम करता है, जो पोर्टफोलियो को बाजार की उतार-चढ़ाव से सुरक्षा प्रदान करता है। दीर्घकालिक दृष्टि से देखें तो सोने में तेजी का यह चलन आने वाले समय में भी बना रहने की प्रबल संभावना है।

सोने की बढ़ती कीमतों का यह तूफान निकट भविष्य में थमने के आसार नजर नहीं आ रहे। मुद्रास्फीति, भू-राजनीतिक अनिश्चितताएं, केंद्रीय बैंकों की बढ़ती खरीदारी और डी-डॉलराइजेशन के चलते सोने की मांग लगातार बनी रहेगी। गोल्डमैन सैक्स के अनुमान के अनुसार 2026 के मध्य तक सोने की कीमतों में और 6 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिल सकती है।
भारतीय निवेशकों के लिए यह समय सोने को एक दीर्घकालिक निवेश रणनीति के रूप में देखने का है। त्योहारी सीजन में रिकॉर्ड बिक्री की उम्मीद और ग्रामीण मांग की मजबूती को देखते हुए, सोना एक बार फिर से अपनी विश्वसनीयता साबित कर रहा है। हालांकि कीमतें ऊंची हैं, लेकिन ऐतिहासिक डेटा के अनुसार सोने में निवेश कभी भी घाटे का सौदा नहीं रहा है। इसलिए अपनी वित्तीय क्षमता के अनुसार चरणबद्ध तरीके से सोने में निवेश करना एक समझदारी भरा फैसला हो सकता है।
1. 2025 में सोने की कीमत में इतना बड़ा बदलाव क्यों आया?
👉 वैश्विक आर्थिक मंदी, डॉलर में उतार-चढ़ाव, भू-राजनीतिक तनाव और निवेशकों की बढ़ती मांग के कारण सोने की कीमतों में तेज़ उछाल देखने को मिला है।
2. क्या 2025 में सोने की कीमत और बढ़ेगी?
👉 विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले महीनों में कीमत में और उतार-चढ़ाव संभव है, खासकर चुनावी माहौल और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में हलचल को देखते हुए।
3. क्या अभी सोना खरीदना सही रहेगा?
👉 अगर आप दीर्घकालिक निवेश करना चाहते हैं तो यह समय लाभदायक हो सकता है। हालांकि, अल्पकालिक निवेश के लिए सावधानी बरतना ज़रूरी है।
4. सोने की कीमत में स्थिरता कब आएगी?
👉 विशेषज्ञों के अनुसार, वैश्विक बाज़ार स्थिर होने और ब्याज दरों में कमी आने पर कीमतों में कुछ राहत मिल सकती है।
5. आम निवेशकों को इस उतार-चढ़ाव में क्या करना चाहिए?
👉 निवेशक अपने पोर्टफोलियो में विविधता रखें, एकदम से बड़ी खरीद न करें और विश्वसनीय सोर्स से ही सोना खरीदें।
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